Sunday, August 16, 2015

मुर्दों का जीवन अपना, मुर्दा ही पहचान।

१. संप्रदाय, मानवता के नाम पर एक ऐसा कलंक है जो वक्त की स्याही के साथ दिन पर दिन गाढ़ा होता जा रहा हैं.........अनिल कुमार 'अलीन'
२. नास्तिकता इस बात से है कि आस्तिकता है| वरना नास्तिकता, आस्तिकता की तरह बोझ नहीं जो सर पर ढोयी जाए.....अनिल कुमार 'अलीन'
३. स्वतंत्रता कहीं लफ़्ज़ों में कैद है तो कहीं बंद किताबों के काले अक्षरों में इसका दम घूँट रहा है......अनिल कुमार 'अलीन'
४. गीता वाणी:-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:|
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
अच्छेद्योअयमदहयोअयमक्लेद्योअशोषय एव च।
नित्य: सर्वगतः स्थाणुरचलोअयम सनातन:।।...
अर्थ: इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल गला नहीं सकता और वायु नहीं सुखा सकता।
क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहनेवाला और सनातन है।
अर्थात:- जो है ही नहीं उसके कटने, जलने, गलने और सुखने का डर क्या? यदि है तो उसे उसके बारे में इतना कुछ बार-बार बताने की जरुरत क्या है? क्या वह खुद से अनभिज्ञ है? अभी इस श्लोक में कहाँ जा रहा है कि आत्मा स्थिर और अचल है। जबकि इसके पहिले के श्लोकों में कहाँ गया है कि यह एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती हैं। दो विरोधी बातें एक साथ, असंभव। या तो लिखने वाला मुर्ख है या फिर पढ़ने वालों को मुर्ख बनाया हुआ।

५. मुर्दों का जीवन अपना, मुर्दा ही पहचान।
आओ सब मिलकर कहे मेरा भारत महान।
.........अनिल कुमार 'अलीन'........

६. मुर्गा के मांस खात है बकरा कियो हलाल,
गायों पर दया कर, का करबो कमाल...?
......अनिल कुमार 'अलीन'.......
७. मन ही अर्जुन भी है, मन ही कृष्ण भी है।
इस मन के सिवा कोई दूसरा झूठा नहीं।
यदि संसार में कोई ईश्वर है तो निश्चय ही मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं..........
अनिल कुमार 'अलीन'
८. मैं किसी विशेष क्षेत्र में सफल होने की वजाय हरेक क्षेत्र में असफल होना चाहता हूँ---अनिल कुमार 'अलीन'
९. अभी नहीं देखी। आये दिन इतना कुछ देखने के कारण कुछ और देखने को वक्त नही मिलता कि देख सकूँ, इस देखने की ड्यूटी ने देखने की चाहत को देखकर भी देखने न दिया।
.......अनिल कुमार 'अलीन'.........
१०. गीता वाणी:-
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय बवानी गृह्णाति नरोअपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देहि।।
अर्थ: जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को त्यागकर दूसरे नए शरीर को प्राप्त होता है।
सवाल: एक व्यक्ति को अपने वस्त्रों की अच्छी तरह जानकारी होती है। फिर आत्मा जैसे विशिष्ट को अपने शरीर की जानकारी अर्थात यादें क्यों नहीं होती? क्या आत्मा मनुष्य से भी ज्यादा भुलक्कड़ है? या फिर कोई बेवफा सनम जिसका ...किसी एक शरीर से जी नहीं भरता। अतः एक शरीर को छोड़ दूसरे शरीर के पास जाती है और सारा मजा लेकर सब भूल जाती है
है।
अर्थात:-
आत्मा:- निहायत ही घटिया, चरित्रहीन और भुलक्कड़ है।
................अनिल कुमार 'अलीन'...................

११.
आस्तकिता एक ऐसे बीमारी की तरह है जो एक स्वस्थ व्यक्ति को मानसिक रूप से अपाहिज और अपंग कर देती है। नास्तिकता, आस्तकिता रूपी मानसिक बीमारी से मुक्त एक व्यक्ति की सामान्य अवस्था है...........अनिल कुमार 'अलीन'
 
१२. गीता वाणी:-
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजनीतो नायं हन्ति न हन्यते।
अर्थ:-जो इस आत्मा को मारनेवाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते; क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है।
सवाल:-आखिर ये दोनों नहीं जानते तो कौन जानता है?...
अर्थात: यहाँ आत्मा कर्ता नहीं बल्कि शरीर करता है। यदि ऐसा ही है तो शरीर से आत्मा के निकल जाने के बाद भी शरीर किसी को क्यों नहीं मारता?😁😁😁- अनिल कुमार 'अलीन'

१३. आस्तिकों और नास्तिकों की समस्या यह है कि वे या तो मान बैठे है या फिर न मान बैठे। यहाँ बैठे तो दोनों ही है, ठहराव तो दोनों ही में है। जो पहले से मान बैठे है उनके लिए प्रोयग के लिए कुछ मानना मुश्किल है। आपका कुछ समय के लिए मानना या न मानना यह सिद्ध करता है कि आप गति में है, आप प्रयोग में है। आप अपनी वर्तमान अवस्था से आगे निकलने को तैयार है, आप जीवन में है। उनका मानना स्थायी है जो सिद्ध करता है कि वे ठहराव में, अपाहिज है, मरे हुए हैं। और मरे हुए लोगों में हलचल नहीं हुआ करती.....अनिल कुमार 'अलीन'

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