Saturday, August 8, 2015

जितनी ख्वाइशें उतनी मान्यताएँ

यदि हिन्दू इतने अक्लमंद होते तो मानकर नहीं चलते। जितनी ख्वाइशें उतने देवी-देवता। जो रटा दिया गया मान लिए। जो पढ़ लिया मान गए। जब मानकर ही काम चल सकता है तो इस जीवन पद्दति को भला वे जानकर क्या करेंगे। अतः इसे भी वे मान लेते हैं।
इसी बात पर आज ऑफिस में घटित वाकया याद आ गया। एक कर्मचारी जो सोशल कॉर्डिनेटर के पोस्ट पर कार्यरत है। अक्सर कहाँ करता हैं साहब आप हिन्दू धर्म में जन्म लेकर हिन्दू धर्म और देवता को नहीं मानते। आप ये है आप वो है, ठिकाना हो तो आप पिकाना हो और भी बहुत कुछ जिस...का मतलब उसे नहीं पता। उससे मैंने कहाँ कि तुम हिन्दू हो यह कैसे कह सकते हो? उसने कहा क्योंकि मैं हिन्दू धर्म को मानता हूँ। मैंने कहाँ माना तो उसे जाता है जो नहीं है। जो है उसे क्या मानना? अर्थात तुम स्वयं उसके होने से इनकार कर रहे हो। फिर तो गैर हिन्दू तुम हुए मैं कैसे? परंतु यह मेरा अनुभव उसकी समझ के बाहर है। कारण यह कि यदि आधे लीटर पात्रता वाले बर्तन में एक लीटर पानी डाला जायेगा तो आधा लीटर ही आएगा बाकि तो वेस्ट हो ही जानी है।
खैर मैं आज के वाकया की बात बताता हूँ। उसकी आज कलम गुम हो गयी। ढ़ुढ़ते-ढ़ुढ़ते परेशान हो गया। कभी इनसे पूछ रहा था तो कभी उनसे। इसी बीच मुझसे पूछ बैठा। मैंने कहा कि नहीं मिल रही कलम तो मान लो कि मिल गयी। कम से कम तुम्हारी परेशानी तो दूर हो जायेगी। जब इतने बड़े झूठ "भगवान" को इतनी आसानी से मान सकते हो तो छोटी सी कलम को मानने में क्या जाता हैं? आख़िरकार तुम तो मानने में माहिर हो। उसने कहा, "कैसे मान ले सर जब कलम मेरे पास नहीं." मैंने कहा, "बिलकुल वैसे ही जैसे तुम भगवान को मान बैठे हो जबकि वह तुम्हारे पास नहीं." उसने कहा, "सर, भगवान तो संसार में है पर दिखाई नहीं देता इसलिए मानते हैं उसे।" मैंने कहाँ," भाई, तुम्हारी कलम भी तो इसी संसार में जो दिखाई नहीं दे रही है." फिर उसने कहा, "सर, मानने के लिए कोई आधार तो हो. जैसे हम भगवान की फ़ोटो या मूरत बना कर उसे मान लेते हैं." मैं कहा, "भाई, जब भगवान को बना सकते हो तो एक कलम बनाने में कितना समय लगेगा। लो यह मेरी कलम इससे अपने कॉपी पर एक कलम बना लो और मान लो कि यही तुम्हारी कलम है।"
वह सर खजुलाते हुए चला गया क्योकि वह जितना कुछ सीखा था वह खाली हो गया। हो सकता है कि कल फिर अपने मस्तिष्क रूपी हौज में कोई रटी-रटाई कूड़ा-करकट भर ले क्योंकि अब भी वह अहंकार रूपी हौज को तोड़ने को तैयार नहीं। ऐसे में वह सदैव सत्य के अनुभव और अनुभूति से वंचित रह जायेगा। इसी तरह उसका एक-एक दिन मानने में गुजर जायेगा।.....इस मन की गति भी अजीब है। कहीं स्वार्थवश मन आसानी से मान लेता है तो कहीं उसी स्वार्थवश मानने को तैयार नहीं।.....
...............अनिल कुमार 'अलीन'................

अंचल मिश्र आशीष chaliye bhaiya aap ki baat sahi hai..........par ek baat jo mujhe hamesha us ishwar k hone ka pushti karta hai wah hai.
Unlike · Reply · 2 · 17 hrs

  • अंचल मिश्र आशीष 1-holy river ganga. till now it all the word level scientist unable to proove that why bacteria is not born in the water of ganga.
    Unlike · Reply · 1 · 17 hrs

  • अंचल मिश्र आशीष mai manta hu ki our soul is part of god,who is one.
    Unlike · Reply · 1 · 17 hrs · Edited

  • अनिल कुमार 'अलीन' भैया अंचल मिश्र आशीष जी। आप तो चिकित्सा लाइन में सेवारत हो। आपकी ऐसी मूर्खता पूर्ण बात से यही सिद्ध होता है कि आपने सही ढंग से अध्ययन नहीं किया और यहाँ तक आप किसी न किसी जुगाड़ से पहुँचे हो। खैर यह आपकी व्यक्तिगत बाते है भला आपसे बेहतर कौन जानता है। आइये अब मुद्दे की बात करते हैं। आपको तनिक भी पता है कि आप एक सफ़ेद झूठ का समर्थन कर रहे हैं। क्या आपको पता नहीं कि आज गंगा भारत की टॉप थ्री प्रदूषित नदियों में से है। जो बैक्ट्रिया और विषाणुयुक्त है.....आप ही जैसे लोग गंगा को गंगा कहकर उसमे गंदगी फैलाते गए। और आज यह हाल है कि गंगा बेचारी नंगा हो गयी है। किसी को मुँह देखाने लायक नहीं। पता नहीं कैसे आपने उसे देख लिया। लगता है उसे घूँघट में देखा है आपने। भैया एक बार घूँघट उठाकर देख लीजिये उसका क्या सूरत कर दिए हैं आप लोग।.....अलीन।
    Like · Reply · 3 · 16 hrs

  • अरुण खामखाह अंचल मिश्र आशीष...
    कुछ ना कीजिये,बस इतना कीजिये कि गंगा का पानी ले जाकर जरा उस की लैब से जाँच करवा ले...और खुद रिपोर्ट देख ले..
    परिणाम आप के सामने होगा...
    Unlike · Reply · 3 · 16 hrs

  • अनिल कुमार 'अलीन' चलिए आपकी यह बात तो समझ में आ गयी कि our soul is part of god,who is one.पर यह soul क्या है और god क्या है? यह बताने की कोशिश करेंगे आप कि कहीं पढ़ा या सुना और अच्छा लगा तो दिमाग में डाल लिए। कभी जानने की भी कोशिश हुई कि नहीं।
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