Thursday, July 30, 2015

आस्तिकता का इलाज कैसे करें?


एक साथ दीपों को जलाकर दीपावली तो मनायी जा सकती है. परन्तु अँधेरा दूर नहीं किया जा सकता। अँधेरा दूर करने के लिए जरुरी है एक-एक दीप वहाँ तक पहुँचे जहाँ प्रकाश की अनुपस्थिति है. साथ ही इस बात का ध्यान रहे कि न उसमे तेल कम होने पाये और न ही उसकी बाती जलने पाये. वरना बुझा हुआ दीप भी अँधेरे का एक प्रतीक मात्र है. जिसका दम भरने का मतलब है कि हमारे अहंकार के अलावा उसमे कोई रौशनी नहीं. अँधेरा दूर भगाने के लिए जरुरी है कि प्रकाश अनवरत फैलता रहे.
यदि नास्तिकता दीप का प्रतीक है तो ध्यान रहे कि एक निश्चित क्षेत्र अथवा संस्था के रूप में सीमित होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि एक-एक  नास्तिक के आचरण और व्यवहार का चमक वहाँ तक पहुँचे जहाँ आस्तिकता रूपी अँधेरा पुरे समाज/क्षेत्र को अपने आगोश में लेकर आये दिन मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक शोषण कर  रहा है.

अक्सर देखा जाता है कि धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वासों एवं मान्यताओं के पीछे की सच्चाई को उजागर करने पर सामने वाले का हम पर व्यक्तिगत आक्षेप करना स्वाभाविक सी बात है. जब किसी मरीज के फोड़े का ऑपरेशन किया जाता है तो वह दर्द से तड़प उठता है. कभी-कभी कोई अपने शरीर में उठते असहनीय पीड़ा के कारण गलत-सही का भेद भुलाते हुए अपने हितैषी डॉक्टर और नर्स पर ही हमला बोल देता है. किन्तु उसके इस प्रकार के व्यवहार से प्रभावित हुए बिना एक डॉक्टर अपना धर्म निभाते हुए ऑपरेशन में लगा रहता है  और तब तक लगा  रहता है जब तक कि ऑपरेशन सफल न हो जाये. ऐसा ही कुछ धार्मिक मरीजों का इलाज़ करते समय होता है. परन्तु एक प्रोफेशनल नास्तिक वही है जो धार्मिक मरीजों के व्यक्तिगत आक्षेप को भुलाकर उसके ऑपरेशन में लगा रहता हैं. एक सच्चा नास्तिक  वही है जो किसी धार्मिक मरीज पर व्यक्तिगत आक्षेप न करके सीधे उसके मन-मष्तिक में उपजें फोड़े का इलाज़ करता है और तब तक करता है जब तक कि वह इस बिमारी से निजात न पा जाये.                                                                                                                                     …अनिल कुमार 'अलीन'












 










(गूगल इमेज साभार)  

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