Wednesday, July 29, 2015

कार्टून अल्लाह और मुहम्मद का

यदि मैं कार्टूनिस्ट होता और अल्लाह मेरी एक मुराद पूरी करने को कहता तो मैं बस इतना कहता कि मुझे जितनी बार फतवे द्वारा मारा जाय मुझे उतनी बार जिन्दा कर ताकि मैं उतनी बार मुहम्मद तथा तेरे गूंगे, बहरे और अंधेपन का कार्टून बनाता रहूँ।

पर वह काल्पनिक अल्लाह(ईश्वर), किसी मासूम की मौत पर न बोल सकता है, न सुन सकता है और न ही देख सकता हैं। भला वो क्या मेरी इच्छा पूरा करेगा? यदि सक्षम भी होगा तो उसमे उतनी हिम्मत ही नहीं कि वह मेरी इच्छा को पूर्ण कर सके। तब यकीनन वह कायर और डरपोक है जो मुझसे डरता होगा।

जिस अल्लाह के बारे में कहाँ जाता है कि वह सबके अच्छे और बुरे कर्मों का एक दिन फैसला करता हैं......वह अपाहिज भला क्या करेगा? जो खुद को जिन्दा रखने के लिए एक ऐसी अपाहिजों की सेना तैयार कर रखा है जो आये दिन अल्लाह रूपी बैशाखी के सहारे मानवता को रौंदने निकली है......

 धर्मान्धों तक यह बात पहुँच जाए की सच्चाईे कलम से अब रुकने वाली नहीं है और न ही सरों के धर से गिरने के बाद दबने वाली है। एक सर के गिरने के बाद हज़ार सर इस कड़वी सच्चाई को एक स्वर में रखने को आतुर है।
मानवता के दुश्मन फतवा जारी करने की तैयारी करें और मैं मरकर भी ज़िन्दा रहने की........मेरा जिन्दा रहना मेरे शरीर, मौलवी, अल्लाह या फिर किसी बैशाखी की मोहताज़ नहीं.........यह मेरे जिन्दा रहने का जुनून है जो मरकर भी जिन्दा रहेगा......और तबतक रहेगा जबतक कि यह अँधा, गूँगा, बहरा अल्लाह रूपी बैशाखी से मासूम लोगों को रौंदा जाएगा...........मेरा जिन्दा रहना इस बात से है कि मेरे समकालीन अब भी हजारों लोग हैं जो डर, अज्ञान और स्वार्थ से ऊपर उठकर इस भयानक सच्चाई का सामना करने को तैयार हैं........मेरा जिन्दा रहना इस बात से हैं कि मेरे जाने के बाद भी यह सतत् प्रक्रिया रुकनें वाली नहीं एवम् हरेक समय और काल में एक नया चेहरा और रूप में अवतरित होती रहेगी। …… अनिल कुमार 'अलीन'

 

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