Sunday, March 16, 2014

अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में

 

अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में,
छोड़ के नईहरवा, चल जा ससुरवा ना.



ससुरा में खोजत होइहें ननद जेठानी,
गाँव के गोरियां जहाँ भरत होइहें पानी;
पानी में रंग डूबल, रंग में जवानी,
जवानी में डूबल इ दुनिया सारी.
अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में,
पूरा कर द, सास-ससुर के अरमानवां ना.



नइहर में बचपन बितवलू,
माई-बाबु के दुलार तू पवलू,
भैया के तू बहुतें सतवलू ,
अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में,
देखत होइहें रहिया,सास-ससुरवा ना.



सखियन संग नचलू, तू गवलू,
बाग-बगीचा में धूम मचवलू,
सबकरा के दीवाना बनवलू,
अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में ,
सैंया बिछैले होइहें, तोहरे राह में नयनवां ना.



नइहर में राज कईलू बनके तू रानी,
कबतक कटबू इहाँ आपन जवानी ,
सोच ससुरा के होके, कैसे नइहर में बानी.
अबकी होलिया में हो, अबकी होलिया में हो
अलीन देखत होइहें तोहरे सपनवा ना.

-----------१४ अप्रैल, २००२ ---------

अनिल कुमार 'अलीन'

5 comments:

  1. बढिया पोस्ट
    रंगों का ये पर्व खूब मुबारक़ हो आपको...

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  2. बहुत सुन्दर...शुभकामनायें!

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  3. बहुत सुंदर.
    शुभकामनाएँ !

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  4. आप सभी का हार्दिक आभार!

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  5. वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
    नयी पोस्ट@चुनाव का मौसम

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