Saturday, December 17, 2011

मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी

मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
'मेरी सदा' आज की परिवेश की एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी है. जहाँ एक तरफ आदमी चाँद पर पहुँच गया है, वही दूसरी तरफ कुछ लोग अपने घरों से निकलना नहीं चाहते. यह कहानी है मेरी, 'अन्जानी और अनिल' की. हम जो एक दुसरे से वादा किये थे, जीवनभर साथ निभाने और एक साथ सामाजिक कुरीतियों से लड़ने का. मैं उसे अन्जानी कहकर बुलाता हूँ और इससे ज्यादा उसका व्यक्तिगत परिचय देने से इन्कार करता हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वह जो बलिदान अपनों की खातिर दी है, विफल जाये. पर मैं यह जरुर चाहता हूँ कि जिस दर्द में हम दोनों जी रहे हैं, उस दर्द को हमारे अपनो के साथ-साथ वो सारे लोग महसूस करें जो झूठी शान, ईज्जत और मर्यादा की खातिर हम बच्चों को ग़मों के सागर में झोक देते हैं. यदि हम बच्चे अपनो की इज्जत और मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपना रिश्ता निभाते हैं, तो उन्हें भी हमारी भावनाओं का क़द्र करते हुए समाज के सम्मुख आना चाहिए. जब हमारा धर्म, भगवान और कानून अपना जीवनसाथी चुनने और घर बसाने का अधिकार देते हैं तो इसे पूर्ण करने के लिए आपका आशीर्वाद साथ क्यों नहीं? इसका मतलब या तो धर्म, भगवान और कानून गलत हैं या फिर हमारी झूठी शान, इज्जत और मर्यादा...
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
अन्जानी सिर्फ एक नाम नही अपितु यह प्यार, संस्कार, परिश्रम, समझदारी, बुद्धिमता, जिम्मेदारी और सबसे बड़ी बात त्याग की जीती जागती मूरत है. जिसे मैं अपने ख्यालों में बसाये हुए बड़ा हुआ. कभी सोचा नहीं था कि सपने भी यूँ सच हुआ करते हैं. पर उससे मिलने के बाद पता चला कि यदि आपकी चाहत सच्ची हो तो आसमान से तारे टूटकर जमीं पर गिर जाया करते हैं और उससे बिछड़ने के बाद पता चला कि जबतक हमारा समाज और अपने न चाहे तबतक खुदा लाख कोशिश कर ले, दो दिल कभी एक नहीं हो सकते. अन्जानी अपनी चार बहनों में सबसे छोटी और दो भाइयों से बड़ी है. वह बचपन में बहुत ही नटखट और शरारती थी. वह जिंदगी के हरेक पल को अपने अर्थों में जीना चाहती थी. लडको की तरह छोटे-छोटे बाल रखना, boys ड्रेस पहनना और साइकिलिंग उसके शौक हुआ करते थे. परन्तु वह ज्यों-ज्यों बड़ी होती गयी त्यों-त्यों उसे अपने घर की जिम्मेदारियों का एहसास होता गया. यूँही वक्त गुजरता गया और साथ ही साथ एक-एक करके तीनों बड़ी बहनों की शादियाँ होती गयी. कब बचपन की दहलीज पार की, उसको इस बात की खबर तक नहीं हुई. अपनी पढाई के साथ-साथ घर की सारी जिम्मेदारियां उस पर आ पड़ी. घर के सारे काम, झाड़ू-पोछा से लेकर चूल्हा-चाकी तक वह खुद करती. यहाँ तक की घर के सभी सदस्यों के कपडे इकटठा करके साफ करती. इसके साथ-साथ रातों को जागकर सूत काटा करती ताकि घर को आर्थिक रूप से मदद मिल सके. कारण घर की आर्थिक स्थिति का सही न होना. चूँकि वह जीवन में आगे बढ़ना चाहती थी इसलिए पापाजी ने उसकी पढाई यह सोचकर जारी रखी कि यदि पढ़-लिख लेगी तो अपनी बिरादरी में कोई ठीक-ठाक लड़का देखकर उसके हाथ पिल्ले कर दूंगा और अपनी आखिरी जिम्मेदारी से भी मुक्त हो जाऊंगा. आख़िरकार लड़किया माता-पिता के लिए बोझ या जिम्मेदारी ही तो होती हैं जिससे वो जल्द से जल्द मुक्ति चाहते हैं. यह हमारे समाज का वास्तविक रूप है जहाँ एक तरफ हम औरत को देवी का दर्ज़ा देते हैं वही दूसरी तरफ उसे दासी या क़र्ज़ समझते हैं. वैसे पापाजी को फक्र था कि उनके पास बेटी के रूप में एक बेटा हैं. मगर किस बात का....... यक़ीनन जब तक हमें अपना स्वार्थ सिद्ध करना होता है तो हर रिश्ता अच्छा लगता है. पर वही....
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
मैं अपने चार भाइयों और एक बहन में तीसरे नंबर का हूँ. भैया और दीदी की शादी कब की हो चुकी हैं. पर मैं अबतक शादी नहीं किया क्योंकि मैं पहले कुछ बनना चाहता था. वरना यदि घर वालों का बस चलता तो मैं अभी दो बच्चों का बाप होता. चूँकि मेरे विचार बचपन से ही कुछ हट कर थे, अतः मैं अपने घर के साथ-साथ गाँव का भी आँख का तारा था. मेरे ऊपर घर की कोई जिम्मेदारी नहीं थी. बस खाना, पीना, सोना, पढ़ना और......कुछ नहीं. मैं अक्सर एकांत में बैठकर, चिंतन और मनन किया करता था; इस ब्रह्माण्ड और इसके रहस्यों को लेकर. ऐसे ही लोगों की भीड़ में में खुद को तलाशता हुआ बड़ा हुआ. मेरे इस प्रकृति को लेकर मेरे घर वाले हमेशा चिंतित रहे. उन्हें लगता था कि मैं कहीं सन्यासी हो जाऊंगा. जो कि एक घर के लिए अभिशाप हैं. यदि कोई सन्यासी बन जाता है तो उसके घरवालों के लिए इससे कोई बड़ी डूब मरने वाली बात नहीं हो सकती. वही यदि चोर या डाकू बन जाता है तो एक बाप फक्र के साथ सीना तानकर चलता है. यह हमारे समाज का एक ऐसा कटु सत्य हैं जिसे हम स्वीकार नहीं करना चाहते, पर इससे हम इंकार भी नहीं कर सकते हैं. मैं इसकी परवाह किये बिना चाहता था कि इन सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध एक अभियान चलाया जाय जो भारतीय संस्कृति को अन्दर ही अन्दर खोखला करते जा रहे हैं. यह समाज का एक अभिन्न हिस्सा बनकर ही संभव था क्योंकि यदि कीचड़ को साफ करना है तो उसमे उतरना ही पड़ेगा. पर इसके लिए मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था क्योंकि माता-पिता के कन्धों पर बैठकर बचपन का सफ़र तो तय किया जा सकता है परन्तु जवानी का बोझ ढ़ोया नहीं जा सकता. ये बात उस समय और महत्वपूर्ण हो जाती है जब आप उस प्रणाली के खिलाफ जा रहे हो जिसका आप एक अभिन्न हिस्सा हो. वरना आपके पैरों से कब जमीं खीच ली जाएगी आपके मस्तिष्क तक को इसकी भनक नहीं होगी. वो दिन भी आ गया जब मैं ५ जून, २०१० को अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ. फिर मानों मेरे सपनों को पंख लग गया. इधर मैं अपना अभियान शुरू करने में लग गया, उधर घरवालें मेरी शादी के लिए दबाव बनाने लगे. पर मैं चाहता था कि मेरा जीवनसाथी ऐसा हो जो एक अच्छी बीवी के साथ-साथ एक अच्छी बहूँ और एक अच्छी माँ बन सके. चूँकि मेरा सफ़र काँटों भरा था इसलिए मैं नहीं चाहता था कि मुझसे कोई ऐसी चूंक हो जिससे मैं जीवनभर पारिवारिक बेड़ियों में बंध जाऊ. रिश्तें आते गए पर मायूसी के सिवाय मेरे हाथों कुछ नहीं लगा. ऊपर से यह जात-पाति की सीमायें. उफ़....हम आदम जाति के ही हैं या फिर कुत्तों और बिल्लियों की तरह हमारी भी....कोई विशेष पहचान हैं.
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
अचानक मुझे उन दिनों का ख्याल आया जब मुझे गेस्ट लेक्चर देने का शौक हुआ करता था. आज भी मुझे वो दिन याद है जब मैं MBA-1st सेमेस्टर का छात्र था. एक इंटर कौलेज के ११ वीं क्लास में पर्सोनालिटी डेवलोपमेंट पर लेक्चर दे रहा था. एक लड़की जो सबसे पीछे बैठे सवाल पे सवाल किये जा रही थी उसका सवाल पूछने का ढंग और उसका जवाब जानने की जिज्ञासा, उसे उस क्लास में सबसे अलग कर रही थी. यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ कि कोई मेरे सामने सवाल रख रहा हो. परन्तु मैं पहली बार किसी लड़की से इतना प्रभावित हुआ. मैं एक घंटे के उस पीरियड में उसे पूरी तरह भाप गया. शायद मेरी जीवनसाथी की तलाश उस तक आकर ख़त्म हो रही थी. उससे मिलने के बाद मुझे यकीं हो चला कि आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो औरों से हटकर सोचते हैं. पर अफ़सोस इस बात का था कि सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे होने के कारण, उसका चेहरा देख नहीं पाया. रात भर उसके सवाल मेरे कानों में गूंजते रहे. एक पल के लिए मैं उसे अपना जीवनसाथी बनाने को भी सोच लिया परन्तु मैं अभी उस लायक नहीं था. जो खुद दूसरों के पैरों पे खड़ा हो वो भला दूसरो को क्या सहारा देता. अतः मैं उस मुलाकात को दिल के किसी कोने में छुपाकर अपने जीवन के आगे का सफ़र शुरू किया. लगभग तीन साल हो चले थे पर आज भी वह दिल की किसी कोने में जिन्दा थी. शादी का ख्याल आते ही पुराने घाव की तरह उभर आई. समस्या ये थी कि उसके बारे में मुझे ज्यादा कुछ मालूम न था. अतः खुद को ऑफिस के काम में व्यस्त कर लिया.
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जब वो ११ वीं क्लास में थी तो उस समय एक मेरा दोस्त उसके कालेज में अध्यापक हुआ करता था. एक दिन मैं उसके साथ उसके क्षेत्र में था. बातों ही बातों में, मैं उसके सामने उस लड़की का जिक्र किया. पता चला कि वह कही आस ही पास रहती है. उससे मिलने के लिए अपने दोस्त से आग्रह किया. अगले ही पल हम दोनों उसके घर पर थे. वह हमें देखते ही पहचान गयी और अपने घर पर हम दोनों का स्वागत की. मैं उस चेहरे को पहली बार देख रहा था, जीतनी वो दिमाग से तेज थी उतना ही स्वभाव और विचारों से सरल. उससे बातों के दौरान पता चला कि वो अब B.Sc. 2nd year की छात्रा है. उसके बारे में इससे अधिक नहीं जान सका क्योंकि उस आधे घंटे की मुलाकात के दौरान बस उसे देखता ही रहा. दूसरी बार उससे मिलने के बाद ऐसा लगा जैसे कि मेरा इंतजार ख़त्म हो गया हो. वहां से निकलते समय मैंने उसे अपना कान्टेक्ट नंबर यह कहकर दिया कि भविष्य में कभी भी किसी प्रकार कि सलाह की जरुरत पड़े तो मुझे याद करे. मैं आये दिन उसके फोन का इंतजार करता रहा. पर मायूसी के सिवाय मुझे कुछ् हाथ नहीं लगा. उस मुलाकात के लगभग दो महीने हो चले थे. साथ ही उसके फोन आने की आस भी ख़त्म हो चली थी. संयोगवश एक दिन जब मैं अपने ऑफिस में था, सेल फोन का रिंगटोन बजा. रिसीव करने पर पता चला कि वो कोई और नहीं बल्कि अन्जानी है. जो आज कुछ जानी पहचानी लग रही थी. मेरे पूछने पर कौन बोल रहा है. उधर से जवाब आया, "पहचानिए, कौन?" चूँकि मेरी किसी लड़की से जान पहचान नहीं थी. अतः मैं उसे पहचान लिया. वो आश्चर्य चकित थी कि मैं उसे पहचान कैसे लिया. मैंने उससे कहा कि मेरे लाइफ में कोई ऐसी लड़की नहीं जो मुझसे पूछे 'कौन ?' मैं उस दिन बहुत खुश था, शायद वो भी. सामान्य परिचय के साथ हम दोनों अपनी बातें इस आशय के साथ बंद किये कि भविष्य में यूँही हमारी बातों का सिलसिला चलता रहेगा. दो दिनों के बाद उसका फोन आया. चूँकि मैं उसे किसी भी अँधेरे में रखना नहीं चाहता था. अतः उस दिन मैं उसके सामने अपनी शादी का प्रस्ताव रखना मुनाशिब समझा. शायद उसे भी मेरे जैसे किसी जीवन साथी की तलाश थी. लेकिन वो जन्म से क्षत्रिय थी और मैं वैश्य. भले ही भारतीय समाज में धर्म, भगवान और कानून दो दिलों को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार देते हो. परन्तु आज भी राधा-कृष्ण को पूजने वाले इस रुढ़िवादी समाज में यह एक गुनाह है. एक ऐसा गुनाह जिसे रोकने के लिए हमारा समाज धर्म, कानून और इमान सबको ताक पर रख देता है. चूँकि मैं इन परम्पराओं की परवाह नहीं करता जो मानव को मानव से अलग करता हो, अतः मैं अपने फैसले पर अडिग था. बस उसे इस पर विचार करना था क्योंकि एक औरत किसी की बीबी के साथ-साथ किसी की बेटी और बहन भी होती है. वैसे भी दुनिया के सारे रिश्ते एक औरत को ही तो निभाने होते हैं. हम पुरुषों को क्या हैं; अपने स्वार्थ के लिया सारे रिश्तों को बांधें रखते हैं और परंपरा, शान और इज्जत के नाम पर उसकी आहुति देते रहते हैं. हम जो करें, वो सब सही और एक औरत करें वो गलत. इन सबका ध्यान रखते हुए उसने कहा, '' हमें इस विषय पर सोचने के लिए कुछ वक़्त दीजिये." मैंने कहा, "ठीक है आप सोच समझकर मुझे जवाब दीजियेगा."
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आज भी मुझे नवम्बर महीने की ५ तारीख याद है जब मुझे उसका जवाब "हाँ" में मिला ...उस दिन २०१० की दिवाली थी. हम दोनों बहुत खुश थे क्योंकि बचपन से हम जो ख्वाब संजो के चले थे वो सच होने चला था. एक तरफ गलियों और चौराहों पर पटाखें छुट रहें थे. वही दूसरी तरफ दो दिलों में आरमानों की फुलझरियां फुट रहीं थी. जमीं पर दीप जल रहे थे और आसमान पे तारे चमक रहे थे. धरती से लेकर आसमान तक, चारों तरफ उजाला ही उजाला था, कहीं किसी अँधेरे का नामों निशान तक नहीं. ऐसा लग रहा था मानों भगवान आसमान से धरती पर खुशियों की बारिस कर रहा हो. इस दुनिया से अनभिज्ञ हम दोनों को यकीं हो चला था कि ईश्वर ने हम दोनों को एक-दूजे के लिए बनाया गया है. चूँकि उसकी स्नातक की पढाई चल रही थी. अतः हम दोनों में सहमति हुई कि पढाई ख़त्म होने के बाद पैरेंट्स के सामने अपनी बात रखेंगे. अगर उन्होंने एक बार में हा कहा तो हा वरना ना. तबतक हम दोनों एक अच्छे दोस्त की तरह रहेंगे और कुछ नहीं. परन्तु कुछ चीजों पर हम इंसानों का बस नहीं चलता. सेल फोन से बातें करते-करते हम दोनों एक दुसरे से इतना घुल-मिल गए कि खुद को पति-पत्नी समझने लगे. अगर एक दिन भी बात ना हो तो हमें चैन नहीं मिलता और हमेशा हमें इस बात का डर बना रहता कि यदि मम्मी-पापा हमारे रिश्तें को सहमति प्रदान नहीं किये तो फिर हम एक-दुसरे के बिना कैसे रहेंगे. इसलिए हम दोनों फैसला किये कि यदि हम साथ जी नहीं सकते तो साथ मरेंगे परन्तु ना ही आत्महत्या करेंगे और ना ही अपनों से भागेगे. बस उनसे हमें दो ही चीज चाहिए या तो जिंदगी या फिर मौत. अन्जानी बोला करती थी, " अनिल! हम आपसे बहुत प्यार करते हैं. हम आपके बिना मर जायेंगे." मैं उससे बस इतना ही कहता था, " प्यार अपने आप में बहुत बड़ा होता हैं. उसमे अलग से कोई विशेषण लगाने कि आवश्कता नहीं होती." हमें बस अपने रिश्ते को एक साथ निभाना है." दिन पर दिन हम दोनों का एक दुसरे के प्रति प्यार बढ़ता ही गया और साथ ही हमें अपने घरों की इज्जत और मर्यादा का ख्याल भी. हम कभी ऐसा काम नहीं किये जिससे कि हमारे माता-पिता का सर शर्म से निचा हो या हम दोनों भविष्य में उनका सामना ना कर पायें. अतः हम दोनों जितना मानसिक रूप से एक-दुसरे के नजदीक थे, उतना ही शारीरिक रूप एक दुसरे से दूर.

1मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी12मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
चूँकि उसका घर रेलवे स्टेशन के पास पड़ता है. अतः एक दिन ऑफिस के सारे काम ख़त्म करने के बाद शाम के करीब ६ बजे की ट्रेन पकड़कर, उसे सरप्राइज देने के लिए रात को ११ बजे पहुंचा. जब उसका फोन आया तो ना जाने कैसे वो महसूस कर ली कि मैं उसके आस-पास हूँ. उसने कहा, " अनिल, आप कही आस ही पास हो. मेरा दिल झूठा नहीं हो सकता है. आप सच बताओं कि कहा हो और मेरे घर के सामने आओ." फिर क्या था, अगले ही पल मैं उसके घर के नीचे और वो छत के ऊपर थी. वह बहुत खुश थी जो मैं उससे मिलने के लिए आधी रात को इतने दूर से आया था. यह हम दो प्रेमियों कि पहली मुलाकात थी. मानो जमीं और आसमान का मिलन जो मिलकर भी कभी मिल नहीं पाते. उन दिनों कड़ाके कि ठण्ड पड़ रही थी और उस दिन मुझे पूरी रात स्टेशन पर कापते हुए बितानी पड़ी. अन्जानी ने कहा, " अनिल ! आओ और घर से चादर ले जाओ. सुबह जल्दी मुझे वापस कर देना." परन्तु मैंने कहा, "रहने दो अन्जानी! इस ठंडी रात का एक अपना ही मजा है.'' उसने पूछा कि आपने खाना खाया है. उसका दिल रखने के लिए, मैंने कहा कि हाँ, खा कर चला हूँ, तुम सो जाओ. उस स्टेशन पर कुछ खाने को भी नहीं था कि मैं खाता. पूरी रात पेट में चूहें कूदते रहे और बाहर, कुत्ते भौंकते रहे. वो ठंडी रात मुझ पर इस कदर कहर बरसा रही थी. मानों मेरे साथ-साथ पूरी दुनिया काप रही हो. मेरे शारीर को स्पर्श करने वाली ठंडी हवा. मेरे नशों में दौड़ रहे लहू को जमा रही थी. सड़के खामोश थी और दूर-दूर आदम जाति का नामों निशान तक नहीं था. वहां मेरे सिवा बस दो-चार रेलवे के स्टाफ मौजिद थे और रह-रह कर गुजरने वाली कुछ ट्रेने. रेलवे स्टाफ सरकारी ड्रेस में ऐसे प्रतीत हो रहे थे. मानो यमराज द्वारा भेजे गए देवदूत जो मुझे अपने साथ ले जाने आये हो. गुजरती हुई ट्रेने मानों स्वयं यमराज जो समय-समय पर आकर स्थिति का जायजा ले रही हो. ऐसा लग रहा था, पूरी दुनिया से मानव जाति का अंत हो चूका है और मैं, वो आखिरी इंसान जो अपनी मौत की राह देख रहा हो. उस कड़ाके की ठंडी रात में करवटे बदलते रहा परन्तु नींद नहीं आई. जीवन में पहली बार मैं अपनी रात घर से बाहर किसी स्टेशन पर कापते हुए बिताया. फिर सुबह की पहली ट्रेन से ऑफिस को लौट आया. चूँकि अन्जानी को मेरा वहाँ आना अच्छा लगा. अतः उसकी ख़ुशी के लिए अक्सर रातों को मिलने जाने लगा. वो पहले की तरह या तो खिड़की पर होती थी या फिर छत के ऊपर. वो पल हमारे जिंदगी के सुनहले पल थे जिसे हम दोनों चाहकर भी भुला नहीं सकते. दिल में तो बहुत ख्वाइश होती थी कि हम एक दुसरे को गले लगाये. परन्तु हमारी ख्वाइश हर बार ही हमारे सिने में दफ़न हो जाती थी. करीब होकर भी हम दोनों के दरमियाँ एक फासला था जिसे न ही वह ख़त्म करना चाहती थी और न ही मैं. ऐसा नहीं था कि वो ईंट और पत्थरों से बनी दीवारें या सलाखों से सजी खिड़कियाँ हमारे प्यार से मजबूत थी. पर हाँ, एक चीज थी जो हमारे प्यार से भी मजबूत थी और वो थी हमारे घर की मर्यादा और अपनों की इज्जत, जो हमें विरासत में मिली थी. हमें इस बात का गर्व था कि हम अपने माता-पिता के संतान हैं. साथ ही इस बात का एहसास कि हमारी जिंदगी हमारे पैरेंट्स द्वारा दी गयी एक ऐसी सौगात है, जो हमारी तो है परन्तु हमेशा उनके साथ जुडी हुई है. एक ऐसा रिश्ता जिसे हम चाहकर भी तोड़ नहीं सकते क्योंकि हम जहाँ भी रहे और जिस हाल में रहे, हमेशा इससे बंधे हुए हैं. वे हरपल हमारे साथ है; चाहें वो हमारी ख़ुशी हो या गम. यह अलग बात है कि हम उनके साथ हैं या नहीं. वो हमारे जन्म के साथ भी है और मृत्यु के बाद भी. परन्तु यह भी तो सत्य है कि सौगात किसी का भी हो लौटाई नहीं जाती.

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हमारी मुलाकातों और सेल फोन पर बातों का सिलसिला चलता रहा. एक-एक दिन बस इस इंतजार में कटते रहे कि एक दिन वो भी घड़ी आएगी जब हमारे बीच के सारे फासले मिट जायेंगे. फिर वह, मैं और हमारे सपने जो अपने साथ-साथ अपने घरवालों के लिए देखें थे. हमारे पैरेंट्स और उनके गोद में खेलते हमारे दो फुल से बच्चे. इतना सब कुछ कितना अच्छा लगता है. हम दोनों की बातों का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया. बातें करते-करते अक्सर शाम से सुबह हो जाती. घंटों बातें करने के बावजूद भी हमारी बातें अधूरी रह जाती. बस यह आलम था हमारी बातों और रातों का कि होठों तक पानी कि बूंद आते-आते हम प्यासे रह जाते थे. हम दोनों अपनी बातों में एक हकीकत की दुनिया बसा रखे थे जिसे सपनों से कहीं दूर छुपायें फिरते. उसमें हमारा दो कमरों का छोटा सा घर; जिसमे हमारे फुल जैसे दो बच्चे 'श्रेयांस और अलीना' हस्ते हुए नज़र आते थे. अक्सर अन्जानी मुझे 'श्रेयांस का पापा' और मैं उसे 'श्रेयांस की मम्मी' कहकर बुलाता था. एक बार की बात है जब मैं लम्बी यात्रा से घर को लौटा. थके होने के कारण, जल्दी खाना खाकर सो गया. रात को करीब १ बजे श्रेयांस की मम्मी का मिस काल आई. गहरी नींद में होने के कारण मैं उसका जवाब नहीं दे सका. उसने मेसेज किया, "श्रेयांस के पापा, आप सो गएँ हैं क्या? प्लीज, उठिए न. हमें आपसे बातें करनी है. " जब मैं मेसेज को पढ़ा उस समय रात को सवा दो हो रहें थे. वो दिन जब कभी याद आतें हैं तो आखों से आंसू छलक उठते हैं. ऐसे जाने कितने ही हशीन पल हैं जो हम अपने आँखों में संजों के रखे हैं. यक़ीनन भगवान ने हम दोनों को एक-दुसरे के लिए बनाया था. पर हम शायद भूल गए थे कि इस संसार में उसके अलावा भी एक शक्ति हैं जो उसकी सत्ता को चुनौती दे रही हैं और वो है 'इंसान.' हमने अपना रिश्ता बाखुदा निभाया और साथ ही अपने घरों कि मर्यादाएं भी. पर हमें मालूम न था कि जिन घरों का हम इतना ख्याल कर रहे हैं उनमे रहने वाले हमारे अपने एक दिन हमारे खुशियों का गला घोंट देंगे. आखिर वो दिन भी आ गया जब एक तरफ हम और दूसरी तरफ हमारे अपने. सबसे पहले हमारे रिश्तें की खबर, मेरे घरवालों को हुई. यह बात है १४ जनवरी, २०११ की. मेरे अपने सभी एक तरफ और दूसरी तरफ मैं. सबकुछ हिंदी फिल्मों की तरह लग रहा है, है न. परन्तु रीयल लाइफ उतना ही टफ होती है. यह उस समय और टफ हो जाती हैं जब हमारे अपने झूठी शान और मर्यादा के लिए अपने और पराये का एहसास कराने लगते हैं, जो रिश्तें निभाने की सबक दिया करते थे वो रिश्ता तोड़ने की बात करते हैं. जिसे हम चाहकर भी नहीं तोड़ सकते क्योंकि इस संसार में कुछ ऐसी चीजे हैं जिसकी कोई कीमत नहीं लगायी जा सकती. उनमे से माँ-बाप का प्यार सर्वोपरि होता है. परन्तु जिंदगी देने वाला जिंदगी का फैसला करने लगे तो निश्चय ही प्यार व्यापर में बदल जाता है. जब हमारे माता पिता अपने हक़ की दुहाई देते हैं तो आंसुओं से आँखें भर जाती है. उस समय मरने के सिवा कोई रास्ता नज़र नहीं आता जब अपने कहते हैं, "एक लड़की के लिए अपने माता-पिता को ठुकरा रहें हो." जिस प्यार को हम इबादत समझते हैं वो अब एक गुनाह और अभिशाप की तरह लगने लगता है. यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ प्यार का मतलब सिर्फ एक लड़की के प्यार से नहीं है. यदि यह सचमुच गुनाह है तो हम सभी गुनाहगार हुए. हम उन्हें कैसे समझाएं कि एक व्यक्ति विशेष के लिए हम उनका साथ नहीं बल्कि वो हमारा साथ छोड़ रहें हैं और हमें झोक देते हैं ग़मों के सागर में जहाँ हम तडपते हैं, रोते हैं, चिलाते हैं और जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता तो मजबूर होकर मौत को गले लगते हैं. हम तो हरेक रिश्तें को निभाना चाहते हैं क्योंकि रिश्तें जोड़ने के लिए होते हैं तोड़ने के लिए नहीं. बस मैं वही कर रहा था.
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आखिर वो दिन भी आ गया जब अन्जानी के घरवालों को भी इस बात की भनक हो गयी जब मेरे द्वारा दिया गया सेल फोन पकड़ा गया. फिर वही हुआ जो अक्सर दो दिलों के साथ होता है. उसे मारने-पीटने के साथ-साथ डराया और धमकाया गया. उनकी मम्मी ने मुझे फोन करके ढेर सारी गलियों के साथ, यह चेतवानी दी कि यदि हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाते है तो वो हमारी बोटी-बोटी करके चील और कौवों को दे देंगी. पर हमें इस बात की चिंता नहीं थी क्योंकि आज कल चील और कौवें दीखते ही कहाँ हैं. परन्तु इस बात की फिक्र जरुर थी कि यदि हमारे बोटियों के सड़न से प्रदुषण फ़ैल गया तो कहीं कोई और जीव विलुप्त न हो जाये. वैसे हम इंसानों की यह फितरत सी हो गयी है कि न हम चैन से रहेंगे और न दूसरों को रहने देंगे. आखिर हमारे क्रिया कलापों से कुछ तो पता चलना चाहिए हमारी संस्कृति और सभ्यता का. वो ऊपर वाला भी देखता होगा तो उसे अपनी इस कृति पर पछतावा होता होगा. जिसे उसने क्षमा, दया, प्रेम, विवेक, भावना और मह्तावाकंक्षा जैसे आभूषणों से सजाकर इस धरती पर यह सोचकर भेजा था कि उसके द्वारा बनायीं गयी मानव जाति सर्वोत्तम कृति हैं. परन्तु हम इंसान यहाँ आकर .......छोडिये जाने भी दीजिये साहब, मैं भी कहा अपनी कहानी को छोड़कर फिलोसफी करने लगा. तो कहाँ थे हम........हाँ याद आया. हम दोनों अपने घर और मर्यादा कि खातिर सबकुछ सहते गए. ये बात थी १८अप्रैल, २०११ कि सुबह लगभा ७:३० कि. मैंने उनकी मम्मी को बताया, "हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिससे आप लोगों का सर शर्म से नीचा हो. हम दोनों एक-दुसरे से शादी करना चाहते हैं और वो भी आपकी रजामंदी से." मगर वो हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. मुझसे नफ़रत का वहां वो आलम था कि यदि अन्जानी अपने जुबान से मेरा नाम ले ले तो उसके होठों पर मेरा नाम आने से पहले उसके मुंह पर जोड़ की पड़ती थी. सचमुच यकीं नहीं होता कि आज शिक्षा और ज्ञान का व्यापक स्वरुप होने के बावजूद कहीं न कहीं नैतिकता और मौलिकता में कमी सी रह गयी है और मानव जीवन का उद्देश्य कहीं परम्पराओं, जिम्मेदारियों और मान-मर्यादा में सिमट कर रह गया है. मैं अन्जानी से मिलने उसके कोचिंग क्लास पर गया. वह मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी. शायद इसलिए कि उसके जख्म और दर्द को देखकर मेरे आखों में आंसू न निकले क्योंकि उसे पता था कि मैं बहुत ही भावुक हूँ. वह हसतें हुए बोली, " अनिल! सब कुछ ख़त्म हो गया." उसकी जुबान से यह शब्द सुनकर मेरी आँख भर आई. हूँ............कभी-कभी कितना मजबूर हो जाता है इंसान जब जीवन के संघर्ष में अपनों के विरुद्ध खड़ा होना पड़ता है और वो भी अपने माता-पिता के. जो उसपर गुजर रह थी, मैं अच्छी तरह समझ सकता था क्योंकि यह सब मुझ पर भी तो बीत चुका था. अन्जानी नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से मेरी जान जाये. बस वो इतना चाहती थी कि मैं जहाँ रहूँ, सही सलामत रहूँ. अतः वह मुझसे फासला बनाना बेहतर समझी.
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मैंने उसे समझाया, " अन्जानी! हम सिर्फ अपने लिए नहीं जी रहे हैं. हम जी रहे हैं अपने आने वाले कल के लिए जहाँ किसी मोड़ पर हमारे बच्चे 'श्रेयांस और अलीना' अपने मम्मी-पापा का इंतजार कर रहे हैं. जब हम एक दुसरे के जीवनसाथी हैं तो हमें एक साथ आने वाले मुश्किलों का सामना करना होगा. भले ही हमारी जिंदगी दो पल की क्यों न हो पर वह पल हमें एक साथ गुजरना है. यदि हम ऐसा न कर सके तो हमारा रिश्ता एक गाली बनकर रह जायेगा और हमेशा के लिए हमें बदचलन और आवारा का नाम दिया जायेगा. हमें अपने रिश्तें को एक पाक अंजाम तक पहुँचाना है और इसके लिए चाहे हम इस दुनिया में रहें या न रहें. हाँ हमारी सोच रहे और इसके साथ ही 'अन्जानी और अनिल' का प्यार. " उसे मेरी बात कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी. एक बार फिर हम दोनों ने अपने आने वाले कल के लिए, आज को भुलाकर एक नयी उड़न के लिए खुद को तैयार किये. इस दौरान मैं अपने पैरेंट्स को मना लिया. मगर उसके पैरेंट्स अभी तक हमारे रिश्तें के लिए तैयार नहीं हुए और यह मानकर चल रहें थे कि हम दोनों का रिश्ता ख़त्म हो चूका है. एक दिन अचानक उनको खबर हुई कि आज भी हम दोनों के बीच बातों का सिलसिला कायम है. मम्मी ने एक बार फिर उसकी पिटाई की जिससे उसका चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया. उससे भी जी नहीं मना तो रस्सी से उसका गला कस दिया. फिर भी अन्जानी बेजान पत्थरों की भाति सबकुछ सहती गयी. बस इतना ही बोल सकी, "मुझे जो करना था, वह कर दी. अब आपको जो करना है, करिए." कभी-कभी एक माँ कितना निर्दयी हो जाती है की अपने जिगर के टुकड़े की जान की प्यासी बन जाती है, इस बात का यकीं नहीं होता. अन्जानी छटपिटाती रही परन्तु मम्मी ने गले से रस्सी का फंदा नहीं निकाला. वो तो गनीमत थी कि उनकी दीदी ने हस्तक्षेप करकर अन्जानी की जान बचायी. नहीं तो उस दिन एक माँ के हाथों अनर्थ हो जाता और ममता हमेशा के लिए अभिशापित हो जाती. जब मैं एक बार फिर अन्जानी से मिलने उसके कोचिंग क्लास गया तो उसके चेहरे पर पड़े घावों और गर्दन पर पड़े रस्सी के निशान से सारा माज़रा समझ गया और मैं चाहकर भी अपने आँखों से छलकते आंसुओं को रोक न सका. परन्तु आज भी उसके चेहरे पर पहले की भाति एक हँसी थी. जितना मजबूत वो है, मैं नहीं क्योंकि वो हरेक परिस्थितियों का हँसकर सामना करती है. सचमुच वह उस समय इस दुनिया में सबसे अधिक समझदार और शक्तिशाली औरत लग रही थी. जिसे मैं अपनी पत्नी के रूप में पाया था. अन्जानी ने कहा, "अब कुछ नहीं हो सकता. यदि हम दोनों शादी करते हैं तो हमारे अपने हमारे साथ-साथ खुद को मार देंगे. ऐसा उनका कहना है और फिर हम अपना रिश्ता निभाकर क्या करेंगे कि हमारे वजह से कोई अपना इस दुनिया में न रहे." यक़ीनन यह एक महान सोच थी और उससे भी महान उसका त्याग जो अपने पैरेंट्स के लिए करने जा रही थी. शायद उसे पता नहीं था कि उसका त्याग पैरेंट्स के लिए नहीं बल्कि झूठी शान और मर्यादा के लिए था. यह भारतीय इतिहास में पहली बार होने जा रहा था कि कोई पतिव्रता पत्नी झूठी शान और मर्यादा के लिए अपने पति को छोड़ने को तैयार थी. काश ऐसी सोच हमारे बड़े विकसित करते तो आज हमारे बीच सामाजिक कुरीतियाँ इस कदर पैर नहीं पसारती. सचमुच उस दिन हमारे अपने कितने गलत थे और हमेशा गलत रहेंगे. क्योंकि वे झूठी शान और मर्यादा की खातिर हमारी जान लेने को तैयार थे और हम अपने रिश्ते को बचाने की खातिर अपनी जान देने को तैयार थे. उसे जितना अपनो से लड़ना था, उतना लड़ चुकी थी. अब और उसमे हिम्मत नहीं थी कि हमारे रिश्तें को जिन्दा रख सके. अन्दर ही अन्दर टूट चुकी थी. अन्जानी ने कहा, " अनिल! हो सके तो मुझे कहीं से ज़हर लाकर दे दो क्योंकि इस समस्या का बस यही एक हल दिख रहा है." मैंने कहा, "नहीं अन्जानी यदि मरना ही है तो हम साथ मरेंगे. परन्तु परिस्थितियों से भाग कर नहीं बल्कि लड़ते हुए."

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अब सेल फोन पर हमारी बातें बंद हो चली थी. उन्ही दिनों एक बार अन्जानी का फोन आया भी तो मैंने उसे मना कर दिया. मुझे इस बात का डर था कि आज उसका गला दबाया गया है तो कल उसका गला काटा भी जा सकता है. अतः अब मैं उसके कोचिंग क्लास पर ही सप्ताह में एक बार मिल लिया करता था. उस दौरान मुझे शक था पर यकीं नहीं कि वो पूरी तरह से टूट चुकी है. आरमानों और खुशियों से सजे हमारी छोटी सी दुनिया को इसलिए उजाड़ दी ताकि हमारे अपनों का घर बसा रहे. अपने आसुओं को चहारदीवारी के अन्दर कैद कर ली ताकि उसकी सिसकियाँ बहार न जा सके. उसका कोचिंग क्लास न करने के कारण, अब मेरा उससे मिलना-जुलना भी बंद हो गया. उधर वह तडपती रही और इधर मैं. इसी दौरान जब मैं १७-२१अक्टूबर,२०११ के बीच ट्रेनिंग के लिए लखनऊ गया हुआ था. २०अक्टूबर,२०११ को लगभग शाम ६.३० बजे की बात है. ट्रेनिंग क्लास करके गेस्ट हाउस पहुंचा था. तभी अन्जानी का फोन आया, " हम अब आप से शादी नहीं करना चाहते. कोई प्रयास मत करिए क्योंकि कोई फायदा नहीं होगा." मैं यह सुनकर पागल सा हो गया. ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे पैरों तलों से जमीं खींच ली गयी हो. मेरे रोने और चिल्लाने से उस कमरें की दीवारें गूंज उठी. मगर अफ़सोस इस बात का था कि मेरी करुण आवाज सुनकर वो धराशायी नहीं हुई. अन्जानी के घर के सारे सेल फोन स्विच ऑफ़ कर दिए गए. मुझे सारा मासला समझ में आने लगा. उसने तो अपने दिल पर पत्थर रखकर वो कह दी जो कभी सोची नहीं थी और अन्दर ही अन्दर घुटती रही. मैं अन्जानी के पापा से बात करने के लिए, उसके घर का नंबर डायल करता रहा. लगभग एक घंटे के बाद अन्जानी के घर का नंबर लगा और उनकी मम्मी से बात हुई. मैं उनसे विनती करता रहा कि वो हमें अलग न करें. परन्तु एक बार फिर मुझे गालियों और धमकियों के सिवाय कुछ न मिला. तब से लेकर आज तक रोज जीता हूँ और रोज मरता हूँ और किसी चमत्कार का इंतजार करता हूँ कि हमारे अपने अपनी रुढ़िवादी परम्पराओं को छोड़कर काश हमारे खुशियों के बारे में सोचें ताकि अपनी अन्जानी से बिछड़ा यह अनिल मिल जाये. नहीं तो अब जीने की आशा जाती रही .........................................................................Yet to be end.
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानीमेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी
उसने तो अपने तड़प और दर्द के साथ जीना सीख लिया. पर मैं आज भी अंधेरों में रोशनी की तलाश करता फिरता हूँ. आज मैं अपने दर्द और तकलीफ को इसलिए वयां कर रहा हूँ ताकि अन्जानी से किया वादा पूरा कर सकू. इसके साथ ही मेरे दर्द को आप सभी महसूस कर सके. वैसे भी मैं इस दुनिया में अकेला नहीं हूँ जिसके साथ यह घटना घटित हुई है. हमारे जैसे जाने कितने 'अन्जानी और अनिल' हैं. जो आये दिन झूठी शान, मर्यादा और रुढ़िवादी परम्पराओं का शिकार हो रहे हैं. साथ ही उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह जाती है. शायद आप भी उनमे से एक हो. फिर आप क्यों चाहते है कि जो आपके साथ हुआ, वह किसी और के साथ भी हो. हम इंसानों और जानवरों में फर्क ही क्या रहा. मैं नहीं चाहता कि जो अंजाम 'अन्जानी और अनिल' जैसे रिश्तों का होता आया हैं, भविष्य में उसकी पुनरावृति हो. हमें किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष से नाराजगी नहीं है बल्कि आपको हमारी खुशियों से नाराजगी है. हम किसी से कोई रिश्ता नहीं तोडना चाहते बल्कि आप अपने रिश्ते कि दुहाई देकर हमारा रिश्ता तोडना चाहते हैं. हमें आपकी जिंदगी जीने से कोई ऐतराज नहीं है. परन्तु हमें हमारी जिंदगी जीने का अधिकार चाहिए. आप भी सोचों आखिर कौन गलत है और कौन सही. एक तरफ कोई रिश्ता जोड़ना चाहता है और दूसरी तरफ कोई रिश्ता तोड़ना चाहता है.
मेरी सदा-एक अधूरी परन्तु सच्ची प्रेम कहानी(चित्र गूगल इमेज साभार )

21 comments:

  1. its very nice story.. bt i dont think its real..is it really true???

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  2. First of all, I wish you,'Happy New Year'.It's really a true love story, not only mine but also people like me. It may be that I will be the first person dares to publish his story because of I don't want that someone else would face problem like this in coming days.
    Thanks for so nice comment, Shruti.

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  3. meri bhe love story kuch aisa he hai dear no body can trust without fall in love and deny by the society and not accepted their love.

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  4. When we lose one we love, our bitterest tears are called forth by the memory of hours when we love not enough. MAA BAAP BACCHO KI KUSHI CHAHTEY HAI PAR BACCHO KA DIL TOD KAR WO BACCHO SEY KAY ASHA KARTY HAI KI UNKI KAHNEY PAR WO BALIDAN TO APNEY AAP KO KAR DETEY HAI PAR KAY WO KUSH RAHTEY HAI KABHI SOCH HAI.DIL HAI DIL DIL SEY NAHI NIKAL SHAKTEY USEY JO USKEY DIL MEY HAI.

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  5. Namsakar! Sunil Ji.It's great honour for me that I m getting ur comment time to time.

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  6. nice but hurt toching , kya aabhi tak usne shaadi nahi ki or aapne please rply me

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  7. nice story but sad & hurt touching , kya aapki aanjani aapko mili, usne abhi tak shadi nahi ki or aapne please rply me

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  8. shukriya dost, sharir se aatma marane ke baad hi alag hoti hai. bas apani maut ke intzar men ek-ek din mar raha hun.......par main chahta hun ki marane se pahale us samajik kuriti aur soch ke virudh ek abhiyan chalau. jisaki chhoti si shuruwat kar diya hun.......ab main dainik jagran aur navbharattimes ke blog par apana blog open kiya hun. yadi aap mere palpal ki khabar rakhana chahte hai to nimn link visit karen jahan meri prem kahani aapko hindi men bhi mil jayegi....
    http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/merisada/
    http://merisada.jagranjunction.com/2012/02/15/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%81-%E0%A4%B8/

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. Janab Yogesh ji..................kya aapke marane se wo log saare bach jayenge jo
    is rudhiwadi vichardhara ke hnour killing ke naam par shikar ho rahe
    hain....ek jiwan aur ek feelings bahut hi mahatwpurn hai. sirf swarth
    ke liye to jiya nahi ja sakata.......aap unke liye jiyen aur prayas
    karen .......jinse jindagi ruthi hui hai..............yakinan aapke
    prayas se jo aapke saath hua hai dusaron ke saath nahin hoga.....aur
    pyar ki jeet hogi............
    aapko jankar khushi hogi ki main aur anjaani ek-dusare ka saath dene
    ka vichar karake 24 sept, 2012 ko parinay sutra men bandh chuke hai
    aur ek saath nai shuruwat kar rahe hai ..shuruwat apane
    liye.....shuruwat pyar ke liye...............aur ek nai shuruwat unke
    liye jinse jindagi ruthi hai.............hamari aage ki kahani aap
    nimn web site par padh sakte hain............

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  11. http://merisada.jagranjunction.com/author/anilkumaraline/
    http://hamarisada.jagranjunction.com/

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  12. DEAR ANIL JI ITS A VERY DARD BHARI KAHANI

    ADHURI BATO KA INTZAR SA HAI

    AAJ B YEH DIL BEKRAR SA HAI ,

    DUNDTI REHTI HAI NIGHEN IDER UDHER YAKNIN INHE AAJ B KUCH PYAR SA HAI

    JALNE LAGI AAB TO TAMNAYON KI CHITA

    MARNE KO YEH BILKUL TYAR SA HAI

    DARDE DIL KE LIYA JAKHME JUDAI BAHUT HAI

    ASHG BAHENE KE LIYA TANHAI BAHUT HAI

    KISE DUNDTEY HO IS BHIR ME SUNIL

    DIN KE UJALEY ME SEHAI BAHUT HAI

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  13. its realy very nice and heart touching story....hope ki humare parents ise samjh paaye

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    1. शुक्रिया मनीषा जी!
      ...........................................जी वो तो नहीं समझे हमें ही अपना रास्ता बदलना पड़ा. बहरहाल हम दोनों दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से २४ sep, २०१२ को शादी कर ली. आज हमारी ७ महीने की एक बेटी भी है ....जिसका नाम 'अलीना' है

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  14. Koi nhi samjhega hume
    Na ye samaj na he humare parents, bache mar bhi jaye tho b chalega par unki ye jhuti ghamand kam nhi hone denge
    Ek aur ye shiv parvati, radha krishna, ram sita in sub ki puja krte h or dusri aur bacho ko ussi puja ki agni me jalate h
    Humne kya galti ki h jo pyar ki saza judai he samaj teh h or ye vishwas krte h humare parents ki hum sub bhul jayenge, kya unhe hum computer lagte h jisme delete ka button hoga n usse hum daba denge or sub bhul jayenge
    Hum b insaan h dard hota h hume b bt tab humare aasu kisi ko nhi dekhte jispe bachpun se vishwas ki uski ko dhudhkarte ho aap log aape k sanskar h hum pe galat nhi krenge
    Bt koi parents humari ye baat nhi samajna chahta ye bol kr jawani ka josh h or sub bt jisne dil se chaha h vo he samajtha h ye dard ko or koi nhi

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  15. आदरणीय श्री जी!
    ....................................ऐसी कई चीजें है पैरेंट्स और हमारे बीच में दीवार कड़ी करती है. जिससे चाहकर भी हम एक मत नहीं हो पाते. सच तो यह है कि यहाँ कोई किसी को समझना नहीं चाहता. अतः बेहतर है कि हम खुद को इतना सामर्थ्यवान करें कि समाज के इन्कार के बाद भी हम अपना वैवाहिक जीवन निभा सके क्योंकि समर्थ के न दोष गोसाईं...............
    वैसे भी पुरानी परम्पराएं टूटेगी और नई परम्पराओं का उदभव होगा. यही विधि का विधान है और यही समय की माँग. संसार परिवर्तन का दूसरा नाम है वरना फिर तो जड़ रह जाएगा उसमे चेतना कहाँ रह जायेगी? वैसे भी फल जब ज्यादा पाक जाता है तो उसमे से बदबू आने लगती है और ऐसा ही कुछ परम्पराएं है.......समय रहते फल को खाना होगा और जो बच गया उससे अपना मोह तोड़कर मिटटी में दबा देना होगा ताकि नया वृक्ष का जन्म हो सके वरना सड़ने के बाद तो महामरी फैलना स्वाभाविक सी बात है..............

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  16. HI FRND...I DONT THINK U R RIGHT.IF U THINK I M WRONG...THEN U CAN JUST THINK I M WRONG BUT I M NOT WRONG.AGAR AAP KO APNE PERENTS KI CHINTA HOTI TO TO..AAP USSE RELATION RAKHNE SE PEHLE SOCHTE.APNE SURUVAT KIE.. YAHI APKI GALTI.AAP SOCHTE HONGE JISNE PYAR NAHI KIYA VO PYAR KE BARE ME KYA JANE! BUT IT IS NOT TRUE.EVERY MAN & WOMEN LOVE HIS PARENTS.I LOVE MY PARENTS TOO.ESSA NAHI HAI KI MENE PARENTS KE ALAVA KABHI KISISE PYAR NAHI KIYA.KIYA HAI...KHUD SE BHI JYADA CHAHTA HUN...USE.ME BHALE HI USE BHAGVAN ME DEKHTA HUN.BUT MY MOM-DAD IS GOD FOR ME.AND HUMAN OR ANIMAL CAN'T LIVE WITHOUT LOVE OF GOD.SO I THINK IT'S YOUR FAULT.AGAR AAP KEHTE HAI KI AAP KE MOM DAD NE APNI IJJAT BARKARAR RAKHNE K LIYE AAP KO RISTA JODNE SE MANA KIYA HAI....TO AAP GALAT SOCHTE HAI KYONKI USSI IJJAT ME AAP KA 50% BHAG HAI.SORRRY AGAR AAP KO MERI BATO SE BURA LAGA HO TO........


    AAP KA YE BLOG PADH KE MUZE PEHLE KHUSI HUIE PARR COMMENTO SE PATA CHALTA HAI KI.....YAHA PE LOG APNE PARANTS KE PRATI PYAR NAHI NAFRAT DIKHA RAHE HAI.MERI AAP SE DARKHAST HAI KI PLZ JO PARENTS KE BARE ME BURA LIKHE USKI COMMENTS DELET MARR DI JAYE.PLZ...
    PARENTS ARE OUR GOD.
    OUR CREATION IS MADE BY OUR PARENTS.

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  17. AFTER SEE YOUR LAST COMMENT...I M HAPPY TO SEE U TOGETHER.I WISS U ALL THE BEST FOR EVERY MOMENT OF YOUR LIFE. I WISS SHREYANSH BHI JALD HI AAP KE SATH HO.

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  18. truely...very touchy..!! <3 is it true ?
    love it....

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  19. Read Romantic Love Shayari, Hindi Love Shayari in Hindi and Dil Se Dil Ki Shayari Online.

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  20. यह बात सच है मै भी इस दौर से गुजरा हू ।

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