१.
यह जो मैं हूँ
मैं होकर भी
मैं नहीं।
मैं के होने से मैं हूँ
तो फिर मैं कौन हूँ?
जबकि बस मैं ही हूँ
अब मैं होकर भी
मैं नहीं हूँ।
यह सजा
मैं का होने का
कि मैं होकर भी
मैं न रहा।
मैं की खातिर
जिस मैं को भुलाया मैं।
आज उसी मैं की
जरुरत है मुझे।
अब मैं होकर भी
मैं नहीं हूँ।
२.
कमबख्त किसको पड़ी है कुछ होने की यहाँ
जब कुछ न होकर ही बहुत कुछ है "अलीन"।
३.
अभी तक जिन्दा हूँ जो कहता हूँ कि मैं मर गया।
४.
खुद का भ्रम बहुत है ख़ुदा के होने के लिए।
ख़ुदा का भ्रम पैदा न कर खुद के होने के लिए।
..........अनिल कुमार 'अलीन' ........
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