Thursday, August 27, 2015

फिर ये जगत माता कैसे?

बचपन से काली, दुर्गा, सरस्वती इत्यादि काल्पनिक देवियों के बारे में सुनते आया हूँ कि ये सभी जगत माता हैं अर्थात सम्पूर्ण संसार की माँ। भला यह कैसे संभव है कि इस संसार की एक से अधिक माँ हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये संसार के अलग-अलग क्षेत्रों, जीवोँ एवम् उसकी परिस्थितिकी के जन्म की कारक हैं। यदि ऐसा है तो फिर ये जगत माता कैसे?
खैर छोड़िये इन बातों को। इनमे ऐसा कुछ नहीं जिसे तवज्जु दिया जाय। कुछ फते की बात किया जाय और वह यह है कि क्या एक माँ बर्दाश्त कर सकती हैं कि उसी के सामने उसके... नाम पर उसके किसी पुत्र की बलि दी जाय? हो सकता है कि संसार में ढूढ़ने पर ऐसी उलटी खोपड़ी की एक की जगह हजार मिल जाय। क्योंकि संसार विभिन्नताओं का नाम है। परंतु ये तो जगत माता हैं अर्थात पुरे संसार की माँ। फिर,क्या यह संभव है कि जगत माता के सामने कोई उसके पुत्रों की बलि उसी के नाम पर दे और वह उसे हँसी-खुँसी स्वीकार करें। इतना ही नहीं, वह प्रसन्न होकर बलि चढाने वाले अन्य पुत्रों को ख़ुशी, सम्पन्नता और तृष्णाओं की पूर्ति का बलिदान दे। यक़ीनन कोई भी विवेकशील या तर्कशील व्यक्ति या विकासशील समाज इस कड़वे सत्य को स्वीकार नहीं कर सकता कि कोई जगत माता अपने पुत्रों की बलि लेगी। फिर तो बलि प्रथा को लेकर लोगों की आस्था झूठी है या फिर यह जगत माता या फिर दोनों। वरना जिस माता की शक्तियों की गुणगान करते वेद, पुराण एवम् भक्तों की मुर्ख फ़ौज नहीं थकती। वह माता निरपराध, बेजुबान एवम् मासूम पशुओं की बलि पर पत्थर नहीं बनी रहती। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये जगत माताएं केवल मनुष्यों की है, पशुओं की नहीं। फिर ये जगत माता कैसे हो सकती हैं? यह तो कोई अफवाह है जो डर, स्वार्थ एवम् अज्ञानतावश मूर्खों ने फैलायी है।.............सूफी ध्यान श्री|

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