Saturday, February 4, 2017

दम तोड़ता प्रजातंत्र (लघु कथा)

नशापुर में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो नशा का आदि न हो। शाम होते ही गाँव के गली एवं चैराहे शराब के नशे में इस कदर डूब जाते थे कि उन राहों में गुगल मैप भी लड़खड़ा जाये। ऊपर से आगामी विधानसभा का चुनाव मानो नशा पुर में शराब की नदियां उमड़ पड़ी हो। गाँव का बुरा हाल था। सड़क, बिजली, पानी, सफाई, विद्यालय इत्यादि बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण ग्रामवासी सामाजिक एवं आर्थिक रुप से अति पिछड़े थे। बुझन माझी उस गाँव का इकलौता शख्स जो नशे से कोसो दूर पढ़ा-लिखा, जिम्मेदार व जागरुक मतदाता था। रोजी-रोटी का एक मात्र साधन खेती-किसानी जिससे खाने भर अनाज पैदा हो जाता था। किन्तु इससे इकलौते बेटे की पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल था। तथापि तमाम व्यक्तिगत एवं पारिवारिक समस्याओं के उपरान्त भी बुझन माझी गाँव की समस्याओं को लेकर चिन्तित रहता था। लोगों को समझाते- समझाते थक चुका था। मगर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। शराब की लत गाँव के विकास के लिए बहुत बड़ी बाधक थी। शराब के लिए गाँव का एक-एक वोट बिक गया किन्तु बुझन माझी किसी भी प्रकार के राजनैतिक प्रलोभन में नहीं आने वाला था। वह वही किया जो उसे उचित लगा। आखिरकार वह दिन भी आया जब विधानसभा चुनाव सम्मपन्न होने के उपरान्त एक बार फिर नशा पुर को लम्बे-चैड़े वादे, आश्वाशन के सिवाय कुछ न मिला। चुनाव के बाद गाँव के विकास के इन्तजार में तीन साल बीत चुके थे । एक दिन बुझन माझी के बेटे की तबीयत बहुत बिगड़ गयी। आस-पास कोई डाक्टर न होने के कारण बुझन माझी उसे शहर ले गया। जहाँ डाक्टरों ने बताया की उसे ब्रेन ट्यूमर है। यह बात सुनकर मानो बुझन माझी के पैरों तले जमीन खिसक गयी हो। वह मूर्च्छित होकर वहीं गिर पड़ा। होश आने पर डाक्टरों ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए तीन लाख रुपये का इन्तजाम करो तो तुम्हारे बेटे की जान बचायी जा सकती है। बहुत कोशिशो के बाद भी बुझन माझी तीन लाख रुपये का इन्तजाम नही कर सका। गाँव वालों के समझाने पर बुझन माझी उस क्षेत्र के विधायक जी के चैखट का चक्कर मारता रहा किन्तु झुठे आश्वासन और वादे के सिवाय उसके हाथ कुछ न लगा। आखिरकार इलाज के अभाव में इकलौता बेटा दम तोड़ दिया। गाँव के अन्य लोगों की तरह बुझन माझी भी बेटे के गम में खुद को नशे में डूबो दिया। युहीं एक-एक दिन बीतते गये। एक बार फिर विधानसभा चुनाव नजदीक था। वहीं झुठे वादें, झूठी कसमें, दम तोड़ते आश्वासन और नशे में डूबा नशापुर अब तो ऐसा कोई शख्स नहीं था जो गाँव की बात करें, गाँव वालों की बात करें और गाँव की विकास की बात करें। बुझन माझी को भी विकास की जरुरत नहीं थी। उसे किसी चीज की जरुरत थी तो वह थी शराब की बोतल और वो उसे विधानसभा चुनाव के दौरान भरपुर मिल रही थी।                                                  .......सूफ़ी ध्यान श्री 

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